उदृबोधन-पत्र
(भारत आकर बसे परिवार के अनेक शिवरोंन्मुख विपस्सी साधकों को लिखा गया एक धर्मपत्र ), रंगून, 4-2-1969) प्रिय साधक एवं साधिकायो! धर्मं धारण करो! साधना में कोई कठिनाई हुई हो तो उससे घबराना नहीं चाहिए । संस्कारों का मेल छंटने में कठिनाई तो होती ही है, फोड़े की मवाद निकलने की तरह उसे धेर्यपूर्वक सह लेने में ही साधना की सिद्धि है । यह पत्र पहुंचने तक जो शिविर में बैठे ही हों, उनके लाभार्थ विपश्यना पर कुछ कहू । यह जो सिर से पांव तक सारे शरीर में , अंग-प्नत्यंग में, तुम्हें किसी न किसी संवेदना की अनुभूति हो रहीं है और इस अनुभूति को तुम इसके अनित्य रूप में देख-पहचान रहै हो - यहीं विपश्यना है । जितनी देर इस अनित्यता का दर्शन कर रहे हो, उतनी देर सत्य के साथ हो l सत्य बडा शक्तिशाली है । जहाँ सत्य है वहाँ विद्या का बल है, अविद्या का क्षय है । जहाँ सत्य है वहीं ज्ञान है, बोधि है, प्रकाश है, निर्वाण है । और जहाँ ये सब है वहां अज्ञानता, मूढता, अंधकार और मोह कैसे रह सकते हैं भला? राग और द्वेष कैसे रह सकत्ते है भला? और ये ही तो चित्त के मैल हैं । ये ही फोडे है, ये ही फोडे की पीप है । इनके...